मंडला मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कही जाने वाली मां नर्मदा आज खुद जीवन के लिए संघर्ष कर रही है तटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ तो बढ़ रही है लेकिन आचमन करने वाले की संख्या घटी जा रही है वजह नर्मदा का पानी अब आस्था का प्रतीक नहीं है बल्के प्रदूषण का दर्पण बन गया है छोटे बड़े 15 16 से नालों का कचरा रासायनिक खेती का जहर बन गया है औद्योगिक कचरे ने इस पवित्र नदी को प्रदूषण का गटर बना दिया है सरकारी दावे और सच्चाई के बीच बढ़ती खाई भारत सरकार ने नर्मदा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 15 करोड़ रुपए दिए और राज्य सरकार भी करोड़ों रुपए फूंक रही है फिर भी हालत जस के तस है मतमेला पानी और नर्मदा दूर दूर तक फैली गंदगी साफ दिखती है लेकिन चौंकाने वाली बात यह की मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में यह नहीं प्रदूषण मुक्त बताई जाती है क्या ये आंकड़ों का खेल है या फिर सच्चाई छुपाई छुपाने की कोशिश 20 साल में घटा जल स्तर भविष्य अंधकारमय वन कटाव और सामाजिक खेती के प्रभाव ने नर्मदा के जल स्तर पिछले 20 वर्षों में बुरी तरह घटा दिया है विशेषज्ञों की मानना है कि यह जल स्तर वाले समय में और भी कम होगा यह केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं है बल्के करोड़ों लोगों की जीवन और आस्था का सवाल है गांव शहर उद्योग खेती और प्रशाशन हर कोई अपनी भूमिका निभाने में विफल रहा है अगर अब भी कड़े कदम नहीं उठाए गए तो नर्मदा के गोद में जल की जगह केवल गंदगी रहेगी मां नर्मदा को बचाने के लिए एक जुट होना होगा वरना प्रदेश की यह जीवन रेखा इतिहास बन कर रह जाएगी